रात-दिन बाज़ू-ए-मिज़्गाँ पे बँधा रहता है By Sher << रोज़ हो जाती हैं हम से एक... प्यार से दुश्मन के वो आलम... >> रात-दिन बाज़ू-ए-मिज़्गाँ पे बँधा रहता है है मिरा अश्क मिरे दीदा-ए-तर का ता'वीज़ Share on: