रोज़ हो जाती हैं हम से एक दो अठखेलियाँ By Sher << सैकड़ों मन से भी ज़ंजीर म... रात-दिन बाज़ू-ए-मिज़्गाँ ... >> रोज़ हो जाती हैं हम से एक दो अठखेलियाँ नौजवानी आज तक बाक़ी है चर्ख़-ए-पीर की Share on: