रंज-ओ-ग़म उठाए हैं फ़िक्र-ओ-फ़न भी पाए हैं By Sher << दुनिया है कि गोशा-ए-जहन्न... ख़याल क्या है जो अल्फ़ाज़... >> रंज-ओ-ग़म उठाए हैं फ़िक्र-ओ-फ़न भी पाए हैं ज़िंदगी को जितना भी जी सके जिया हम ने Share on: