सैकड़ों मन से भी ज़ंजीर मिरी भारी है By Sher << साकिन-ए-मस्जिद कभी गह मोत... रोज़ हो जाती हैं हम से एक... >> सैकड़ों मन से भी ज़ंजीर मिरी भारी है वाह क्या शौकत-ए-सामान-ए-गुनह-गारी है Share on: