सैंकड़ों दिलकश बहारें थीं हमारी मुंतज़िर By Sher << आज तक कोई न अरमान हमारा न... ब-ज़ाहिर यूँ तो मैं सिमटा... >> सैंकड़ों दिलकश बहारें थीं हमारी मुंतज़िर हम तिरी ख़्वाहिश में लेकिन ठोकरें खाते रहे Share on: