समेटता रहा ख़ुद को मैं उम्र-भर लेकिन By Sher << हम रिंद-ए-परेशाँ हैं माह-... ये तूफ़ान-ए-हवादिस और तला... >> समेटता रहा ख़ुद को मैं उम्र-भर लेकिन बिखेरता रहा शबनम का सिलसिला मुझ को Share on: