जिस शख़्स के जीते जी पूछा न गया 'साक़िब' By Sher << किताब-ए-दर्स-ए-मजनूँ मुसह... रंग लाई है हसरत-ए-तामीर >> जिस शख़्स के जीते जी पूछा न गया 'साक़िब' उस शख़्स के मरने पर उट्ठे हैं क़लम कितने Share on: