सताती है तुम्हारी याद जब मुझ को शब-ए-हिज्राँ By Sher << हश्र को मानता हूँ बे-देखे पुश्त पर क़ातिल का ख़ंजर ... >> सताती है तुम्हारी याद जब मुझ को शब-ए-हिज्राँ मुझे ख़ुद अपनी हस्ती अजनबी मालूम होती है Share on: