शब-ए-वसलत तो जाते जाते अंधा कर गई मुझ को By Sher << ढाँपा कफ़न ने दाग़-ए-उयूब... क़िबला-ओ-काबा ये तो पीने ... >> शब-ए-वसलत तो जाते जाते अंधा कर गई मुझ को तुम अब बहरा करो साहब सुना कर नाम रुख़्सत का Share on: