शहर में जीना है चलना दो-रुख़ी तलवार पर By Sher << सुना है हर घड़ी तू मुस्कु... शहर का मंज़र हमारे घर के ... >> शहर में जीना है चलना दो-रुख़ी तलवार पर आदमी किस से बचे किस की तरफ़-दारी करे Share on: