जब उठे तूफ़ाँ तो कोई चीज़ ज़द में हो 'शकील' By Sher << लब-ए-निगार को ज़हमत न दो ... आरज़ू हसरत और उम्मीद शिका... >> जब उठे तूफ़ाँ तो कोई चीज़ ज़द में हो 'शकील' हर बुलंदी के लिए इक आबगीना चाहिए Share on: