शर्म आती है कि उस शहर में हम हैं कि जहाँ By Sher << नुक्ता यही अज़ल से पढ़ाया... लिक्खा है तारीख़ के सफ़हे... >> शर्म आती है कि उस शहर में हम हैं कि जहाँ न मिले भीक तो लाखों का गुज़ारा ही न हो Share on: