शायद तुम भी अब न मुझे पहचान सको By Sher << मस्लहत के हज़ार पर्दे हैं मकीनों के तअल्लुक़ ही से ... >> शायद तुम भी अब न मुझे पहचान सको अब मैं ख़ुद को अपने जैसा लगता हूँ Share on: