सुनती है रोज़ नग़्मा-ए-ज़ंजीर-ए-आशिक़ाँ By Sher << वक़्त है अब नमाज़-ए-मग़रि... फिर से ख़ुदा बनाएगा कोई न... >> सुनती है रोज़ नग़्मा-ए-ज़ंजीर-ए-आशिक़ाँ वो ज़ुल्फ़ भी है सिलसिला-ए-अहल-ए-चिश्त में Share on: