टहनी पे ख़मोश इक परिंदा By Sher << कूचा-ए-जानाँ में यारो कौन... उन से बचना कि बिछाते हैं ... >> टहनी पे ख़मोश इक परिंदा माज़ी के उलट रहा है दफ़्तर Share on: