तिलिस्म-ए-ख़्वाब से मेरा बदन पत्थर नहीं होता By Sher << उड़ चला वो इक जुदा ख़ाका ... न छोड़ा हिज्र में भी ख़ान... >> तिलिस्म-ए-ख़्वाब से मेरा बदन पत्थर नहीं होता मिरी जब आँख खुलती है मैं बिस्तर पर नहीं होता Share on: