तोड़ डालें हम निज़ाम-ए-ख़स्तगी By Sher << बस्ती के हस्सास दिलों को ... पत्थरों से कब तलक बाँधेगी... >> तोड़ डालें हम निज़ाम-ए-ख़स्तगी ये जहाँ कोहना दोबारा बने Share on: