उट्ठा जो अब्र दिल की उमंगें चमक उठीं By Sher << चुप रहो क्यूँ मिज़ाज पूछत... हर नई नस्ल को इक ताज़ा मद... >> उट्ठा जो अब्र दिल की उमंगें चमक उठीं लहराईं बिजलियाँ तो मैं लहरा के पी गया Share on: