या-रब ग़म-ए-हिज्राँ में इतना तो किया होता By Sher << दिन तो शिकम की आग बुझाने ... उम्मीद तो बंध जाती तस्कीन... >> या-रब ग़म-ए-हिज्राँ में इतना तो किया होता जो हाथ जिगर पर है वो दस्त-ए-दुआ होता Share on: