ये ज़मीं तो है किसी काग़ज़ी कश्ती जैसी By Sher << याद तिरी जैसे कि सर-ए-शाम रुख़ हाथ पे रक्खा न करो व... >> ये ज़मीं तो है किसी काग़ज़ी कश्ती जैसी बैठ जाता हूँ अगर बार न समझा जाए Share on: