ये रूह रक़्स-ए-चराग़ाँ है अपने हल्क़े में By ज़िंदगी, बुढ़ापा, Sher << दिन निकलना था कि सारे शहर... उसी ने मुझ पे उठाए हैं सं... >> ये रूह रक़्स-ए-चराग़ाँ है अपने हल्क़े में ये जिस्म साया है और साया ढल रहा है मियाँ Share on: