ज़ब्त-ए-ग़म का मिरे अंदाज़ा भला क्या होता By Sher << मरने के बअ'द कोई पशेम... यूँ तो क़दम क़दम पे ख़ुदा... >> ज़ब्त-ए-ग़म का मिरे अंदाज़ा भला क्या होता मैं अगर दश्त न होता भी तो दरिया होता Share on: