कहाँ चली गईं कर के ये तोड़-फोड़ 'ज़फ़र' By Sher << अश्क-बारी से ग़म-ओ-दर्द क... जैसे दोज़ख़ की हवा खा के ... >> कहाँ चली गईं कर के ये तोड़-फोड़ 'ज़फ़र' वो बिजलियाँ मिरे आ'साब से गुज़रते हुए Share on: