न तेरी शान कम होती न रुतबा ही घटा होता Admin गुस्से वाली शायरी, अन्य << इसे इत्तिफ़ाक़ समझो या मेरे... उसके होंठों पे कभी बददुआ ... >> न तेरी शान कम होती न रुतबा ही घटा होताजो गुस्से मेँ कहा तुमने वही हंस के कहा होता। Share on: