तुम छत पे आकर देखती हो, दूर तक बैचेनी से मुझेकरती हो मेरा इंतजार, आँखों पर हाथों की छत बनाकर,और जब मैं आ जाता हूँ, तसल्ली तो हो जाती है तुम्हेंकि हूँ मैं आसपास, फिर बेपरवाह सी छिप जाती हो तुमये तेरा पहले करना इंतजार, फिर मुहँ फेर लेना अदा सेजानता हूँ तुझे, देखती है तू, मुझे कनखियों से बार बार,तू क्या सोचती है, समझ ना पाउन्गा तेरे इस प्यार कोन बताने का तरीका है तुझे, छिपाने का सलीका भी नहीं