इस्तिक़लाल

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“मैं सिख बनने के लिए हर्गिज़ तैयार नहीं...
मेरा उस्तुरा वापस कर दो मुझे।”


आँखों पर चर्बी

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“हमारी क़ौम के लोग भी कैसे हैं…
पचास सुवर इतनी मुश्किलों के बाद तलाश कर के इस मस्जिद में काटे हैं।

वहां मंदिरों में धड़ाधड़ गाय का गोश्त बिक रहा है।
लेकिन यहाँ सुवर का मास ख़रीदने के लिए कोई आता ही नहीं।” [...]

सदक़े उसके

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मुजरा ख़त्म हुआ, तमाशाई रुख़्सत हो गए तो उस्तादी जी ने कहा,
“सब कुछ लुटा पिटा कर यहां आए थे लेकिन अल्लाह मियां ने चंद दिनों में ही वारे न्यारे कर दिए।”


पेश-बंदी

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पहली वारदात नाके के होटल के पास हुई। फ़ौरन ही वहां एक सिपाही का पहरा लगा दिया गया।
दूसरी वारदात दूसरे ही रोज़ शाम को स्टोर के सामने हुई। सिपाही को पहली जगह से हटा कर दूसरी वारदात के मक़ाम पर मुतअय्यन कर दिया गया।

तीसरा केस रात के बारह बजे लांड्री के पास हुआ। जब इन्सपेक्टर ने सिपाही को इस नई जगह पहरा देने का हुक्म दिया तो उसने कुछ ग़ौर करने के बाद कहा,
“मुझे वहां खड़ा कीजिए जहां नई वारदात होने वाली है।” [...]

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