जनवरी की एक शाम को एक ख़ुशपोश नौजवान डेविस रोड से गुज़र कर माल रोड पर पहुँचा और चेरिंग क्रास का रुख़ कर के ख़रामाँ ख़रामाँ पटरी पर चलने लगा। ये नौजवान अपनी तराश ख़राश से ख़ासा फ़ैशनेबल मालूम होता था। लंबी लंबी क़लमें, चमकते हुए बाल, बारीक बारीक मूंछें गोया सुरमे की सलाई से बनाई गई हूँ। बादामी रंग का गर्म ओवर कोट पहने हुए जिसके काज में शरबती रंग के गुलाब का एकाध खिला फूल अटका हुआ, सर पर सब्ज़ फ़्लैट हैट एक ख़ास अंदाज़ से टेढ़ी रखी हुई, सफ़ेद सिल्क का गुलूबंद गले के गिर्द लिपटा हुआ, एक हाथ कोट की जेब में, दूसरे में बेद की एक छोटी छड़ी पकड़े हुए जिसे कभी कभी मज़े में आ के घुमाने लगता था। ये हफ़्ते की शाम थी। भरपूर जाड़े का ज़माना। सर्द और तुंद हवा किसी तेज़ धार की तरह जिस्म पर आ के लगती थी मगर उस नौजवान पर उसका कुछ असर मालूम नहीं होता था और लोग ख़ुद को गर्म करने के लिए तेज़ क़दम उठा रहे थे मगर उसे उसकी ज़रूरत न थी जैसे इस कड़कड़ाते जाड़े में उसे टहलने में बड़ा मज़ा आ रहा हो। उसकी चाल ढाल से ऐसा बांकपन टपकता था कि तांगे वाले दूर ही से देख कर सरपट घोड़ा दौड़ाते हुए उसकी तरफ़ लपकते मगर वो छड़ी के इशारे से नहीं कर देता। एक ख़ाली टैक्सी भी उसे देख कर रुकी मगर उसने नो थैंक यू कह कर उसे भी टाल दिया। जैसे जैसे वो मॉल के ज़्यादा बा-रौनक हिस्से की तरफ़ पहुँचता जाता था, उसकी चोंचाली बढ़ती जाती थी। वो मुँह से सीटी बजा के रक़्स की एक अंग्रेज़ी धुन निकालने लगा। उसके साथ ही उसके पाँव भी थिरकते हुए उठने लगे। एक दफ़ा जब आस पास कोई नहीं था तो यकबारगी कुछ ऐसा जोश आया कि उसने दौड़ कर झूट मूट बल देने की कोशिश की, गोया क्रिकेट का खेल हो रहा हो। रास्ते में वो सड़क आई जो लरैंस गार्डन की तरफ़ जाती थी मगर उस वक़्त शाम के धुंदलके और सख़्त कोहरे में उस बाग़ पर कुछ ऐसी उदासी बरस रही थी कि उसने उधर का रुख़ न किया और सीधा चेरिंग क्रास की तरफ़ चलता रहा।
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