पूरब का तमाम आसमान गुलाबी रौशनी में जगमगा रहा था जैसे दीवाली के चराग़ों की सैकड़ों चादरें एक साथ लहलहा रही हों। उसने अलसा कर चटाई से अपने आपको उठाया। पतले मटियाले तकिए के नीचे से बुझी हुई बीड़ी निकाली और पास ही रखी हुई मिट्टी की नियाई में दबी उपले की आग सुलगाई। जल्दी-जल्दी दो दम लगाये। जैसे ही वो चिड़चिड़ा कर भड़की उसने मुँह से थूक दी और दूर से आती हुई आवाज़ को ग़ौर से सुनने की कोशिश की जैसे रात में चौकीदार क़दमों की चाप समझने की कोशिश करता है। अब वो मालिक की आवाज़ में ग़ुस्से से भुने हुए लफ़्ज़ों के पटाख़े सुनने लगा। मेकुवा! अबे मेकुवा के बच्चे! क्या सांप सूँघ गया?
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