नईम मेरे कमरे में दाख़िल हुआ और ख़ामोशी से कुर्सी पर बैठ गया। मैंने उसकी तरफ़ नज़र उठा कर देखा और अख़बार की आख़िरी कापी के लिए जो मज़मून लिख रहा था उसको जारी रखने ही वाला था कि मअ’न मुझे नईम के चेहरे पर एक ग़ैरमामूली तबदीली का एहसास हुआ। मैंने चश्मा उतार कर उसकी तरफ़ फिर देखा और कहा, “क्या बात है नईम, मालूम होता है तुम्हारी तबीयत नासाज़ है।” नईम ने अपने ख़ुश्क लबों पर ज़बान फेरी और जवाब दिया, “क्या बताऊं, अ’जीब मुश्किल में जान फंस गई है। बैठे बिठाए एक ऐसी बात हुई है कि मैं किसी को मुँह दिखाने के क़ाबिल नहीं रहा।” मैंने काग़ज़ की जितनी पर्चियां लिखी थीं जमा करके एक तरफ़ रख दीं और ज़्यादा दिलचस्पी लेकर उससे पूछा, “कोई हादिसा पेश आ गया... फ़िल्म कंपनी में किसी एक्ट्रेस से।” नईम ने फ़ौरन ही कहा, “नहीं भाई, एक्ट्रेस-वेक्ट्रेस से कुछ भी नहीं हुआ। एक और ही मुसीबत में जान फंस गई है। तुम्हें फ़ुर्सत हो तो मैं सारी दास्तान सुनाऊं।”
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