नफ़रत

Shayari By

अजीब वाक़ियात तो दुनिया में होते ही रहते हैं मगर एक मामूली सा वाक़िया नाज़ली की तबीअत को यक-लख़्त क़तई तौर पर बदल दे, ये मेरे लिए बेहद हैरान-कुन बात है। उसकी ये तब्दीली मेरे लिए मुअम्मा है। चूँकि इस वाक़ये से पहले मुझे यक़ीन था कि उसकी तबीअत को बदलना क़तई ना-मुमकिन है। इ लिए अब मैं ये महसूस कर रही हूँ कि नाज़ली वो नाज़ली ही नहीं रही जो बचपन से अब तक मेरी सहेली थी। जैसे उसकी इस तब्दीली में इन्सान की रूह की हक़ीक़त का भेद छुपा है। तअज्जुब की बात तो ये है कि वो एक बहुत ही मामूली वाक़िया था यानी किसी भद्दे से बदनुमा आदमी से ख़ुदा वास्ते का बुग़्ज़ महसूस करना... कितनी आम सी बात है।
सहेली के अलावा वो मेरी भाबी थी। क्यूँकि उसकी शादी भाई मुज़फ़्फ़र से हो चुकी थी। इस बात को तक़रीबन दो साल गुज़र चुके थे। मुज़फ़्फ़र मेरे मामूँ ज़ाद भाई हैं और जालंधर में वकालत करते हैं।

ये वाक़या लाहौर स्टेशन पर हुआ। उस रोज़ मैं और नाज़ली दोनों लायलपुर से जालंधर को आ रही थीं।
एक छोटे से दर्मियाने दर्जे के डिब्बे में हम दोनों अकेली बैठी थीं। नाज़ली पर्दे की सख़्त मुख़ालिफ़ थी। बुर्क़े का बोझ उठाना उससे दूभर हो जाता था। इसलिए गाड़ी में दाख़िल होते ही उसने बुर्क़ा उतार कर लपेटा और सीट पर रख दिया। उस रोज़ उसने ज़र्द रंग की रेशमी साड़ी पहनी हुई थी जिसमें तिलाई हाशिया था। ज़र्द रंग उसे बहुत पसंद था और उसके गोरे गोरे जिस्म में गुलाबी झलक पैदा कर देता था। [...]

रौग़नी पुतले

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शहर का इलिट शॉपिंग सेंटर... जिसकी दीवारें, शेल्फ़, अलमारियां बिलौर की बनी हुई हैं। जिसका बना सजा फ़ेकेड जलते-बुझते रंगदार साइज़ से मुज़य्यन है। जिसके काउंटर्ज़ मुख़्तलिफ़ रंगों के गुलू क्लर्ज़ पेंटस की धारियों से सजे हुए हैं और शेल्फ़ दीदा ज़ेब सामान से लदे हैं जिसके काउंटरों पर स्मार्ट मुतबस्सिम लड़कियां और लड़के यूं ईस्तादा हैं जैसे वो भी प्लास्टिक के पुतले हों। जो उनके इर्दगिर्द यहां वहां सारे हाल में जगह जगह रंगा-रंग लिबास पहने खड़े हैं... हाल फ़ैशन आर्केड से कौन वाक़िफ़ नहीं।
चाहे उन्हें कुछ न ख़रीदना हो, लोग किसी न किसी बहाने फ़ैशन आर्केड का फेरा ज़रूर लगाते हैं। वहां घूमते फिरते नज़र आना एक हैसियत पैदा कर देता है। कुछ पाश चीज़ों और नए डिज़ाइनों को देखने आते हैं ताकि महफ़िलों में लेटस्ट फ़ैशन की बात कर के उप टू डेट होने का रोब जमा सकें। नौजवान आर्केड में घूमने फिरने वालियों को निगाहों से टटोलने आते हैं। गुंडे सेल गर्लज़ से अटास्टा लगाने की कोशिश करते हैं। लड़कियां अपनी नुमाइश के लिए आती हैं। बूढ़े ख़ाली आँखें सेंकते हैं। घाग बेगमात ग्रीन यूथ की टोह में आती हैं। वो सिर्फ़ फ़ैशन आर्केड ही नहीं, रूमान आर्केड भी है, क्यों न हो। आज मुहब्बत भी तो फ़ैशन ही है।

कौन सी चीज़ है जो फ़ैशन आर्केड मुहय्या नहीं करता। ज़रबफ्त से गाढे तक। मोस्ट माडर्न गैजट्स से सुई सलाई तक सी थ्रो से रंगीन मालाओं तक। सब कुछ वहां मौजूद है। लोग घूम घाम कर थक जाते हैं तो आर्केड के रेस्तोराँ में काफ़ी का प्याला लेकर बैठ जाते हैं।
फ़ैशन आर्केड की अहमियत का ये आलम है कि फ़ोरेन डिग्नीटरीज़ ने ख़रीद-ओ-फ़रोख़त करनी हो तो उन्हें ख़ास इंतिज़ामात के तहत आर्केड में लाया जाता है। [...]

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