प्रेम कहानी

Shayari By

मैं आज उस वाक़िए’ का हाल सुनाता हूँ। तुम शायद ये कहो कि मैं अपने आपको धोका दे रहा हूँ। लेकिन तुमने कभी इस बात का तो मुशाहिदा किया होगा कि वो शख़्स जो ज़िंदगी से मुहब्बत करता है कभी-कभी ऐसी हरकतें भी कर बैठता है जिनसे सर्द-मेहरी और ज़िंदगी से नफ़रत टपकती है।
इसकी वज्ह ये है कि उसको ज़िंदगी ने कुछ ऐसी ईज़ा पहुँचाई है कि वो ज़िंदगी की ख़्वाहिश को घोंट कर उससे दूर भागने लगता है और अपने गोशा-ए-आफ़ियत में उसकी राहों को भूल जाता है। लेकिन उसकी मुहब्बत कभी मर नहीं सकती और उसकी आग ख़्वाबों के खंडरात की तह में अंदर ही सुलगती रहती है।

चूँकि ख़्वाबों की दुनिया में रहने की वज्ह से वो ज़िंदगी से बे-बहरा हो जाता है, इसलिए अपनी मंज़िल-ए-मक़्सूद के क़रीब पहुँच कर वो ख़ुशी और ग़ुरूर से इस क़दर भर जाता है कि अपनी सब तदबीरों को ख़ुद ही उल्टा कर देता है और इस ख़याल में कि अब तो मा-हसल मिल गया वो अपनी महबूबा को बजाए ख़ुश करने के मुतनफ़्फ़िर कर देता है। बस यही मेरे साथ भी हुआ।
अब अपनी ज़िंदगी के हालात दोहराने से किया हासिल? ताहम तुम्हें मेरी ज़िंदगी का वो ला-जवाब और सोगवार ज़माना तो याद होगा जब मुझे उससे मुहब्बत थी। मुझे तुम्हारी मुहब्बत भरी तसल्ली-ओ-तशफ़्फ़ी ख़ूब याद है, लेकिन इसके बा-वजूद भी मैं अपने किए को न मिटा सका। मैंने मुहब्बत का ख़ून मुहब्बत से कर डाला और हालाँकि मैं उस वक़्त अपने को क़ातिल न समझता था मगर अब मुझे अपने जुर्म का यक़ीन है। [...]

परवाज़ के बाद

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जैसे कहीं ख़्वाब में जिंजर राजर्ज़ या डायना डरबिन की आवाज़ में ‘सान फ्रेंडोवैली’ का नग़्मा गाया जा रहा हो और फिर एकदम से आँख खुल जाए, या’नी वो कुछ ऐसा सा था जैसे माईकल एंजलो ने एक तस्वीर को उकताकर यूँही छोड़ दिया होगा और ख़ुद किसी ज़्यादा दिलचस्प मॉडल की तरफ़ मुतवज्जेह हो गया हो, लेकिन फिर भी उसकी संजीदा सी हँसी कह रही थी कि भई मैं ऐसा हूँ कि दुनिया के सारे मुसव्विर और सारे संग-तराश अपनी पूरी कोशिश के बा-वजूद मुझ जैसा शाहकार नहीं बना सकते। चुपके-चुपके मुस्कुराए जाओ बे-वक़ूफ़ो! शायद तुम्हें बा’द में अफ़सोस करना पड़े।
ओ सीफ़ो... ओ साइकी... ओ हेलेन... ऐ हमारे नए रेफ्रीजरेटर...।

गर्मी ज़ियादा होती जा रही थी। पाम के पत्तों पर जो माली ने ऊपर से पानी गिराया था तो गर्द कहीं-कहीं से धुल गई थी और कहीं-कहीं उसी तरह बाक़ी थी। और भीगती हुई रात कोशिश कर रही थी कि कुछ रोमैंटिक सी बन जाए। वो बर्फ़ीली लड़की, जो हमेशा सफ़ेद ग़रारे और सफ़ेद दुपट्टे में अपने आपको सबसे बुलंद और अलग सा महसूस करवाने पर मजबूर करती थी, बहुत ख़ामोशी से हक्सले की एक बेहद लग़्व किताब ‘प्वाईंट काउंटर प्वाईंट’ पढ़े जा रही थी जिसके एक लफ़्ज़ का मतलब भी उसकी समझ में न ठुंस सका था।
वो लैम्प की सफ़ेद रौशनी में इतनी ज़र्द और ग़म-गीं नज़र आ रही थी जैसे उसके बरगंडी कुइटेक्स की सारी शीशियाँ फ़र्श पर गिर के टूट गई हों या उसके फ़ीडो को सख़्त ज़ुकाम हो गया हो... और लग रहा था जैसे एक छोटे से ग्लेशियर पर आफ़ताब की किरनें बिखर रही हैं। [...]

मोना लिसा

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परियों की सर-ज़मीन को एक रास्ता जाता है शाह बलूत और सनोबर के जंगलों में से गुज़रता हुआ जहाँ रुपहली नद्दियों के किनारे चेरी और बादाम के सायों में ख़ूबसूरत चरवाहे छोटी-छोटी बाँसुरियों पर ख़्वाबों के नग़्मे अलापते हैं। ये सुनहरे चाँद की वादी है। never never।and के मग़रूर और ख़ूबसूरत शहज़ादे। पीटर पैन का मुल्क जहाँ हमेशा सारी बातें अच्छी-अच्छी हुआ करती हैं। आइसक्रीम की बर्फ़ पड़ती है। चॉकलेट और प्लम केक के मकानों में रहा जाता है। मोटरें पैट्रोल के बजाए चाय से चलती हैं। बग़ैर पढ़े डिग्रियाँ मिल जाती हैं।
और कहानियों के इस मुल्क को जाने वाले रास्ते के किनारे-किनारे बहुत से साइन पोस्ट खड़े हैं जिन पर लिखा है, “सिर्फ़ मोटरों के लिए”

“ये आम रास्ता नहीं”, और शाम के अँधरे में ज़न्नाटे से आती हुई कारों की तेज़ रौशनी में नर्गिस के फूलों की छोटी सी पहाड़ी में से झाँकते हुए ये अल्फ़ाज़ जगमगा उठते हैं, “प्लीज़ आहिस्ता चलाइए... शुक्रिया!”
और बहार की शगुफ़्ता और रौशन दोपहरों में सुनहरे बालों वाली कर्ली लौक्स, सिंड्रेला और स्नो-वाईट छोटी-छोटी फूलों की टोकरियाँ लेकर इस रास्ते पर चेरी के शगूफ़े और सितारा-ए-सहरी की कलियाँ जमा’ करने आया करती थीं। [...]

सोनोरल

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बुशरा ने जब तीसरी मर्तबा ख़्वाब-आवर दवा सोनोरल की तीन टिकियां खा कर ख़ुदकुशी की कोशिश की तो मैं सोचने लगा कि आख़िर ये सिलसिला क्या है। अगर मरना ही है तो संख्या मौजूद है, अफ़ीम है। इन सुमूम के इलावा और भी ज़हर हैं जो बड़ी आसानी से दस्तयाब हैं। हर बार सोनोरल, ही क्यों खाई जाती है।
इसमें कोई शक नहीं कि ये ख़्वाब-आवर दवा ज़्यादा मिक़दार में खाई जाये तो मौत का बाइस होती है लेकिन बुशरा का तीन मर्तबा सिर्फ़ उसे ही इस्तेमाल करना ज़रूर कोई मानी रखता था। पहले मैंने सोचा चूँकि दो मर्तबा दवा खाने से उसकी मौत वाक़े नहीं हुई इसलिए वो एहतियातन उसे ही इस्तेमाल करती है और उसे अपने इक़दाम-ए-ख़ुदकुशी से जो असर पैदा करना होता है, मौत के इधर-उधर रह कर कर लेती है। लेकिन मैं सोचता था कि वो इधर उधर भी हो सकती थी। ये कोई सौ फ़ीसद महफ़ूज़ तरीक़ा नहीं था।

तीसरी मर्तबा जब उसने बत्तीस गोलियां खाईं तो उसके तीसरे शौहर को जो पी.डब्ल्यू.डी में सब ओवरसियर हैं, सुबह साढ़े छः बजे के क़रीब पता चला कि वो फ़ालिजज़दा भैंस की मानिंद बेहिस-ओ-हरकत पलंग पर पड़ी थी। उसको ये ख़्वाब-आवर दवा खाए ग़ालिबन तीन-चार घंटे हो चुके थे।
सब ओवरसियर साहब सख़्त परेशान और लर्ज़ां मेरे पास आए। मुझे सख़्त हैरत हुई, इसलिए कि बुशरा से शादी करने के बाद वो मुझे क़तअन भूल चुके थे। इससे पहले वो हर रोज़ मेरे पास आते और दोनों इकट्ठे बीअर या विस्की पिया करते थे। [...]

ये ग़ाज़ी ये तेरे पुर-अस्रार बन्दे

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ट्रेन मग़रिबी जर्मनी की सरहद में दाख़िल हो चुकी थी। हद-ए-नज़र तक लाला के तख़्ते लहलहा रहे थे। देहात की शफ़्फ़ाफ़ सड़कों पर से कारें ज़न्नाटे से गुज़रती जाती थीं। नदियों में बतखें तैर रही थीं। ट्रेन के एक डिब्बे में पाँच मुसाफ़िर चुप-चाप बैठे थे।
एक बूढ़ा जो खिड़की से सर टिकाए बाहर देख रहा था। एक फ़र्बा औ’रत जो शायद उसकी बेटी थी और उसकी तरफ़ से बहुत फ़िक्रमंद नज़र आती थी। ग़ालिबन वो बीमार था। सीट के दूसरे सिरे पर एक ख़ुश शक्ल तवील-उल-क़ामत शख़्स, चालीस साल के लगभग उ’म्र, मुतबस्सिम पुर-सुकून चेहरा एक फ़्रैंच किताब के मुताले’ में मुनहमिक था। मुक़ाबिल की कुर्सी पर एक नौजवान लड़की जो वज़्अ’ क़त्अ’ से अमरीकन मा’लूम होती थी, एक बा-तस्वीर रिसाले की वरक़-गर्दानी कर रही थी और कभी-कभी नज़रें उठा कर सामने वाले पुर-कशिश शख़्स को देख लेती थी। पाँचवें मुसाफ़िर का चेहरा अख़बार से छिपा था। अख़बार किसी अदक़ अजनबी ज़बान में था। शायद नार्देजियन या हंगेरियन, या हो सकता है आईसलैंडिक। इस दुनिया में बहुत से लोग ऐसे हैं जो आईसलैंडिक में बातें करते हैं। पढ़ते लिखते और शे’र कहते हैं। दुनिया अ’जाइब से ख़ाली नहीं।

अमरीकन-नुमा लड़की ने जो ख़ालिस अमरीकन तजस्सुस से ये जानना चाहती थी कि ये कौन सी ज़बान है, उस ख़ूबसूरत आदमी को अख़बार पढ़ने वाले नौजवान से बातें करते सुना। वो भी किसी अजनबी ज़बान में बोल रहा था। लेकिन वो ज़बान ज़रा मानूस सी मा’लूम हुई। लड़की ने क़यास किया कि ये शख़्स ईरानी या तुर्क है। वो अपने शहर टोरांटो में चंद ईरानी तलबा’ से मिल चुकी थी। चलो ये तो पता चल गया कि ये फ़ैबूलस गाय (fabulous guy) पर्शियन है। (उसने अंग्रेज़ी में सोचा। मैं आपको उर्दू में बता रही हूँ क्योंकि अफ़साना ब-ज़बान-ए-उर्दू है।)
अचानक बूढ़े ने जो अंग्रेज़ था, आहिस्ता से कहा, “दुनिया वाक़ई’ ख़ासी ख़ूबसूरत है।” [...]

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