मियाँ साहब: बहुत देर के बा’द आज मिल बैठने का इत्तेफ़ाक़ हुआ है। बेगम साहिबा: जी हाँ, मियाँ साहब: मस्रूफ़ियतें... बहुत पीछे हटता हूँ मगर ना-अह्ल लोगों का ख़याल करके क़ौम की पेश की हुई ज़िम्मेदारियाँ सँभालनी ही पड़ती हैं। बेगम साहिबा: अस्ल में आप ऐसे मुआमलों में बहुत नर्म दिल वाक़े हुए हैं, बिल्कुल मेरी तरह।
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