वक़्फ़ा

Shayari By

गुज़ाशतेम-ओ-गगुज़शीतेम-ओ-बूदनी हमा बूद
शुदेम-ओ-शुद सुख़न-ए-मा फ़साना-ए-इतफ़ाल

ये निशान हमारे ख़ानदान में पुश्तों से है। बल्कि जहां से हमारे ख़ानदान का सुराग़ मिलना शुरू होता है वहीं से इसका हमारे ख़ानदान में मौजूद होना भी साबित होता है। इस तरह उस की तारीख़ हमारे ख़ानदान की तारीख़ के साथ साथ चलती है।
हमारे ख़ानदान की तारीख़ बहुत मरबूत और क़रीब क़रीब मुकम्मल है, इसलिए कि मेरेअज्दाद को अपने हालात महफ़ूज़ करने और अपना शिजरा दरुस्त रखने का बड़ा शौक़ रहा है। यही वजह है कि हमारे ख़ानदान की तारीख़ शुरू होने के वक़्त से लेकर आज तक उस का तसलसुल टूटा नहीं है। लेकिन इस तारीख़ में बा’ज़ वक़फ़े ऐसे आते हैं... [...]

नवमी

Shayari By

वो अजीब थी। जिस्म देखिए तो एक लड़की सी मालूम होती, चेहरे पर नज़र डालिये तो बिल्कुल बच्ची सी दिखाई देती और अगर आँखों में उतर जाइये तो सारी समूची औरत अंगड़ाइयाँ लेती मिलती। वो सुर्ख़ ऊँचा सा फ़्रॉक और सियाह सलेक्स पहने जगमगा रही थी और सियाह घुँघराले बालों को झटक-झटक कर जीप में अपने सामान का शुमार कर रही थी और मेरे सामने एक दोपहर खिली पड़ी थी। उसने आँगन में क़दम रखते ही अपनी मम्मी से भैया के लिए पूछा था। ऊँचे बग़ैर आस्तीन के ब्लाउज़ और नीची छपी हुई साड़ी में कसी बंधी आँटी ने, जिन्हें अभी अपने बदन पर नाज़ था चमक कर भैया को मुख़ातिब किया, नवमी पूछ रही है कि तुम कौन हो?
भैया ने उदास चेहरे पर सलीक़े से रखी हुई रंजूर आँखें चश्मे के अंदर घुमाईं। रूखे सूखे बालों पर दुबला पतला गंदुमी सा हाथ फेरा। अंकल ने बड़े से बैग को तख़्त पर पटका। पीक थूकने के लिए उगलदान पर झुके और भैया भारी आवाज़ में बोले। भैया की आवाज़ उनकी शख़्सियत को और मुनफ़रिद बना देती है। ग़म में बसी हुई खोजदार आवाज़ से हल्का-हल्का धुआँ सा उठता रहता है और जिसे सुन कर अजनबियत एहसास-ए-कमतरी बन जाती है और ख़्वाह-मख़ाह मुतआरिफ़ होने को जी चाहता है, बहुत छोटी सी थी जब देखा था उसने।

और नवमी को इस तरह देखा जैसे कैलेंडर को देख रहे हों। जवाब इस तरह दिया जैसे आँटी से कह रहे हों उसे बुक्स में रख लीजिए वरना ख़राब हो जाएगा देहात में, और नवमी बेचारी भैया की आवाज़ में शराबोर खड़ी थी। उसकी नज़रें भैया के चेहरे में पैवस्त हो चुकी थीं। अंकल पक्का गाना गाने वालों की तरह खंकार कर बोले, बेटी... मैंने तुम्हें बताया था कि वहाँ गाँव में जहाँ तुम शादी में जा रही हो तुम्हारे एक कज़िन हैं जो बहुत सी किताबों के ऑथर हैं... वही तो हैं ये।
भाबी जो ननद की शादी में भैया से ज़्यादा अपना आपा खोए बैठी थीं एक तरफ़ से बड़बड़ाती निकलीं और भैया को लिए दूसरी तरफ़ चली गईं और भैया ने बे ख़्याली में भी, नवमी की निगाहें भी अपने साथ ही लिए चले गए। और वो बेचारी ख़ाली-ख़ाली आँखें लिए गुम सुम खड़ी रही, जल्दी कीजिए ... पानी लदा खड़ा है। फाटक से किसी ने हाँक लगाई। मैंने आसमान की तरफ़ देखा। सारे में सियाह जामुनी बादल छाए हुए थे और अंधेरा फैला हुआ था जैसे सूरज की बिजली फ़ेल हो गई हो। उस दिन भी ऐसा ही दिल मसोस डालने वाला मौसम था। [...]

Don't have an account? Sign up

Forgot your password?

Error message here!

Error message here!

Hide Error message here!

Error message here!

OR
OR

Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link to create a new password.

Error message here!

Back to log-in

Close