बुशरा ने जब तीसरी मर्तबा ख़्वाब-आवर दवा सोनोरल की तीन टिकियां खा कर ख़ुदकुशी की कोशिश की तो मैं सोचने लगा कि आख़िर ये सिलसिला क्या है। अगर मरना ही है तो संख्या मौजूद है, अफ़ीम है। इन सुमूम के इलावा और भी ज़हर हैं जो बड़ी आसानी से दस्तयाब हैं। हर बार सोनोरल, ही क्यों खाई जाती है। इसमें कोई शक नहीं कि ये ख़्वाब-आवर दवा ज़्यादा मिक़दार में खाई जाये तो मौत का बाइस होती है लेकिन बुशरा का तीन मर्तबा सिर्फ़ उसे ही इस्तेमाल करना ज़रूर कोई मानी रखता था। पहले मैंने सोचा चूँकि दो मर्तबा दवा खाने से उसकी मौत वाक़े नहीं हुई इसलिए वो एहतियातन उसे ही इस्तेमाल करती है और उसे अपने इक़दाम-ए-ख़ुदकुशी से जो असर पैदा करना होता है, मौत के इधर-उधर रह कर कर लेती है। लेकिन मैं सोचता था कि वो इधर उधर भी हो सकती थी। ये कोई सौ फ़ीसद महफ़ूज़ तरीक़ा नहीं था। तीसरी मर्तबा जब उसने बत्तीस गोलियां खाईं तो उसके तीसरे शौहर को जो पी.डब्ल्यू.डी में सब ओवरसियर हैं, सुबह साढ़े छः बजे के क़रीब पता चला कि वो फ़ालिजज़दा भैंस की मानिंद बेहिस-ओ-हरकत पलंग पर पड़ी थी। उसको ये ख़्वाब-आवर दवा खाए ग़ालिबन तीन-चार घंटे हो चुके थे। सब ओवरसियर साहब सख़्त परेशान और लर्ज़ां मेरे पास आए। मुझे सख़्त हैरत हुई, इसलिए कि बुशरा से शादी करने के बाद वो मुझे क़तअन भूल चुके थे। इससे पहले वो हर रोज़ मेरे पास आते और दोनों इकट्ठे बीअर या विस्की पिया करते थे।
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