और ये सब कुछ बस ज़रा सी बात पर हुआ... मुसीबत आती है तो कह कर नहीं आती... पता नहीं वो कौन सी घड़ी थी कि रेल में क़दम रखा अच्छी भली ज़िंदगी मुसीबत हो गई। बात ये हुई कि अगले नवम्बर में जोधपुर से बम्बई आ रही थी सबने कहा... “देखो पछताओगी मत जाओ...” मगर जब च्यूँटी के पर निकलते हैं तो मौत ही आती है। सफ़र लंबा और रेल ज़्यादा हिलने वाली, नींद दूर और रेत के झपाके, ऊपर से तन्हाई, सारा का सारा डिब्बा ख़ाली पड़ा था। जैसे क़ब्रिस्तान में लंबी लंबी क़ब्रें हों... दिल घबराने लगा। अख़बार पढ़ते पढ़ते तंग आ गई। दूसरा लिया... उसमें भी वही ख़बरें, दिल टूट गया।
[...]