सभी हिंदी शायरी

दिल तो क्या जाँ से गुज़रना आया

दिल तो क्या जाँ से गुज़रना आया ...

abdul-qavi-ziya

दिल तो क्या जाँ से गुज़रना आया

दिल तो क्या जाँ से गुज़रना आया ...

abdul-qavi-ziya

महफ़िल में जिस जगह भी मिरा तज़्किरा हुआ

महफ़िल में जिस जगह भी मिरा तज़्किरा हुआ ...

rauf-raheem

लात उट्ठा हाथ उट्ठा जूता उठा माई डीयर

लात उट्ठा हाथ उट्ठा जूता उठा माई डीयर ...

wahid-ansari-burhanpur

ज़लज़ले सख़्त आते रहे रात-भर

ज़लज़ले सख़्त आते रहे रात-भर ...

abdul-mannan-tarzi

ज़लज़ले सख़्त आते रहे रात-भर

ज़लज़ले सख़्त आते रहे रात-भर ...

abdul-mannan-tarzi

क्या यहाँ देखिए क्या वहाँ देखिए

क्या यहाँ देखिए क्या वहाँ देखिए ...

abdul-mannan-tarzi

जब निगाह-ए-तलब मो'तबर हो गई

जब निगाह-ए-तलब मो'तबर हो गई ...

abdul-mannan-tarzi

जुस्तुजू करते ही करते खो गया

जुस्तुजू करते ही करते खो गया ...

bedam-shah-warsi

मुन्कशिफ़ तल्ख़ी-ए-हालात न होने पाई

मुन्कशिफ़ तल्ख़ी-ए-हालात न होने पाई ...

abdul-malik-soz

मिरे दिल में है कि पूछूँ कभी मुर्शिद-ए-मुग़ाँ से

मिरे दिल में है कि पूछूँ कभी मुर्शिद-ए-मुग़ाँ से ...

abdul-majeed-salik

ये ग़ाज़ी ये तेरे पुर-अस्रार बन्दे

ट्रेन मग़रिबी जर्मनी की सरहद में दाख़िल हो चुकी थी। हद-ए-नज़र तक लाला के तख़्ते लहलहा रहे थे। देहात की शफ़्फ़ाफ़ सड़कों पर से कारें ज़न्नाटे से गुज़रती जाती थ...

क़ुर्रतुलऐन-हैदर

नाशाद था नाशाद है मा'लूम नहीं क्यों

नाशाद था नाशाद है मा'लूम नहीं क्यों ...

abdul-majeed-dard-bhopali

नाशाद था नाशाद है मा'लूम नहीं क्यों

नाशाद था नाशाद है मा'लूम नहीं क्यों ...

abdul-majeed-dard-bhopali

मुक़द्दर आज़माना चाहता हूँ

मुक़द्दर आज़माना चाहता हूँ ...

abdul-majeed-dard-bhopali

मुक़द्दर आज़माना चाहता हूँ

मुक़द्दर आज़माना चाहता हूँ ...

abdul-majeed-dard-bhopali

सुना है आलम-ए-बाला में कोई कीमिया-गर था

फिर शाम का अंधेरा छा गया। किसी दूर दराज़ की सरज़मीन से, न जाने कहाँ से मेरे कानों में एक दबी हुई सी, छुपी हुई आवाज़ आहिस्ता-आहिस्ता गा रही थी, ...

क़ुर्रतुलऐन-हैदर

वकालत

मंज़ूर है गुज़ारिश-ए-अहवाल-ए-वाक़ई ...

मिर्ज़ा-अज़ीम-बेग़-चुग़ताई

ये ग़ाज़ी ये तेरे पुर-अस्रार बन्दे

ट्रेन मग़रिबी जर्मनी की सरहद में दाख़िल हो चुकी थी। हद-ए-नज़र तक लाला के तख़्ते लहलहा रहे थे। देहात की शफ़्फ़ाफ़ सड़कों पर से कारें ज़न्नाटे से गुज़रती जाती थ...

क़ुर्रतुलऐन-हैदर

बाँझ

मेरी और उसकी मुलाक़ात आज से ठीक दो बरस पहले अपोलोबंदर पर हुई। शाम का वक़्त था, सूरज की आख़िरी किरनें समुंदर की उन दराज़ लहरों के पीछे ग़ायब हो चुकी थी जो...

सआदत-हसन-मंटो
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