सभी हिंदी शायरी
लात उट्ठा हाथ उट्ठा जूता उठा माई डीयर
लात उट्ठा हाथ उट्ठा जूता उठा माई डीयर ...
मिरे दिल में है कि पूछूँ कभी मुर्शिद-ए-मुग़ाँ से
मिरे दिल में है कि पूछूँ कभी मुर्शिद-ए-मुग़ाँ से ...
ये ग़ाज़ी ये तेरे पुर-अस्रार बन्दे
ट्रेन मग़रिबी जर्मनी की सरहद में दाख़िल हो चुकी थी। हद-ए-नज़र तक लाला के तख़्ते लहलहा रहे थे। देहात की शफ़्फ़ाफ़ सड़कों पर से कारें ज़न्नाटे से गुज़रती जाती थ...
नाशाद था नाशाद है मा'लूम नहीं क्यों
नाशाद था नाशाद है मा'लूम नहीं क्यों ...
नाशाद था नाशाद है मा'लूम नहीं क्यों
नाशाद था नाशाद है मा'लूम नहीं क्यों ...
सुना है आलम-ए-बाला में कोई कीमिया-गर था
फिर शाम का अंधेरा छा गया। किसी दूर दराज़ की सरज़मीन से, न जाने कहाँ से मेरे कानों में एक दबी हुई सी, छुपी हुई आवाज़ आहिस्ता-आहिस्ता गा रही थी, ...
ये ग़ाज़ी ये तेरे पुर-अस्रार बन्दे
ट्रेन मग़रिबी जर्मनी की सरहद में दाख़िल हो चुकी थी। हद-ए-नज़र तक लाला के तख़्ते लहलहा रहे थे। देहात की शफ़्फ़ाफ़ सड़कों पर से कारें ज़न्नाटे से गुज़रती जाती थ...
बाँझ
मेरी और उसकी मुलाक़ात आज से ठीक दो बरस पहले अपोलोबंदर पर हुई। शाम का वक़्त था, सूरज की आख़िरी किरनें समुंदर की उन दराज़ लहरों के पीछे ग़ायब हो चुकी थी जो...