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टलने का यूँ फ़क़ीर नहीं है ये 'इश्क़ है
टलने का यूँ फ़क़ीर नहीं है ये 'इश्क़ है ...
मा'बदों की भीड़ में बुझते ये इंसानी चराग़
मा'बदों की भीड़ में बुझते ये इंसानी चराग़ ...
टलने का यूँ फ़क़ीर नहीं है ये 'इश्क़ है ...
मा'बदों की भीड़ में बुझते ये इंसानी चराग़ ...