आ गया जिस को भी एहसास की वहशत पढ़ना

आ गया जिस को भी एहसास की वहशत पढ़ना
उस ने सीखा ही नहीं लफ़्ज़-ए-मोहब्बत पढ़ना

साल-हा-साल गुज़र जाते हैं पढ़ते पढ़ते
इतना आसान कहाँ दर्स-ए-सदाक़त पढ़ना

पहले इस जिस्म से हर ख़ौफ़ के ख़लिये को निकाल
तब कहीं आएगा आदाब-ए-बग़ावत पढ़ना

मेरी फ़ुर्सत ही बनाती है ख़द्द-ओ-ख़ाल मिरे
मुझ को पढ़ना है तो पहले मिरी फ़ुर्सत पढ़ना

तेरी आदत है हर इक ख़्वाब बदन पर लिखना
जानता ख़ूब हूँ मैं भी तिरी आदत पढ़ना

सर हमारे कभी सज्दों से न उठते हरगिज़
हम को सच-मुच में जो आता तिरी रहमत पढ़ना


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