असीरों का अजब कुछ हाल ये सय्याद करते हैं कभी दिल शाद करते हैं कभी नाशाद करते हैं जिन्हें दिल में बसाया था जिन्हें हम याद करते हैं हमारे दिल की दुनिया को वही बर्बाद करते हैं हमारी याद तो दिल से भुला रक्खी थी मुद्दत से न जाने किस लिए हम को वो फिर से याद करते हैं सितम भी है करम उन का समझ कर कुछ यही दिल में जहान-ए-इश्क़ को हम शौक़ से आबाद करते हैं हमारे क़स्र-ए-दिल को ढा रहे हो कुछ ख़बर भी है उसे बर्बाद करते हो जिसे आबाद करते हैं ज़मीन-ओ-आसमाँ रोते हैं लेकिन वो नहीं रोते तड़प कर शिद्दत-ए-ग़म से जो हम फ़रियाद करते हैं क़मर बे-नूर होता है सितारे माँद पड़ते हैं रुख़-ए-रौशन को उस के हम जो 'नाज़ी' याद करते हैं