आब की तासीर में हूँ प्यास की शिद्दत में हूँ अब्र का साया हूँ लेकिन दश्त की वुसअत में हूँ यूँ तो अपना लग रहा है जिस्म का ये घर मुझे रूह लेकिन कह रही है देख मैं ग़ुर्बत में हूँ और तो अपनी ख़बर है सब मुझे इस के सिवा कौन हूँ क्यूँ हूँ कहाँ हूँ और किस हालत में हूँ याद भी आता नहीं कुछ भूलता भी कुछ नहीं या बहुत मसरूफ़ हूँ मैं या बहुत फ़ुर्सत में हूँ मैं हुआ बेदार तो हर शख़्स ये कहने लगा नींद में हूँ ख़्वाब में हूँ या किसी ग़फ़लत में हूँ ज़िंदगी ने क्या दिया था मौत ने क्या ले लिया ख़ाक से पैदा हुआ था ख़ाक की सोहबत में हूँ