आए भी वो तो शक्ल दिखा कर चले गए दिल की लगी को और बढ़ा कर चले गए बीमार-ए-ग़म के पास वो आ कर चले गए बिगड़ी हुई थी बात बना कर चले गए हाँ ऐ निगाह-ए-शौक़ बता तू कहाँ रही वो गोशा-ए-नक़ाब उठा कर चले गए गो मय-कदे में पी भी रहे थे जनाब-ए-शैख़ हम तो यही कहेंगे कि आ कर चले गए ऐ जज़्ब-ए-दिल बता तो सही तुझ को क्या हुआ कल जब वो हम से आँख बचा कर चले गए उट्ठेंगे हश्र तक न तिरे आस्ताँ से हम ना-अहल ही वो होंगे जो आ कर चले गए गिरने लगे जो उन पे भी परवाने बार बार वो शम-ए-अंजुमन को बुझा कर चले गए कुछ हम-सफ़ीर हो गए सय्याद का शिकार कुछ ख़ुद ही आशियाँ को जला कर चले गए आख़िर ये कू-ए-इश्क़ है 'साहिर' सँभल के चल लाखों यहाँ से ठोकरें खा कर चले गए