रहज़नी का उतर गया सूरज रौशनी आई मर गया सूरज घात ग़ुर्बत से कर गया सूरज बन के फ़िरऔन घर गया सूरज कोई हैरत हमें नहीं होती क्यों क़लंदर से डर गया सूरज है ज़रूरत हलाल खाएँ हम साया साया निखर गया सूरज देखते ही ज़वाल का मंज़र अपने अंदर बिखर गया सूरज है मुक़द्दर सवाल की सूरत रहबरी ऐसी कर गया सूरज कर के ख़ामोश रौशनी 'साहिर' ख़ामुशी से गुज़र गया सूरज