आएगा तिरे पास न दुनिया का कोई शर ऐ साहिब-ए-औसाफ़ तू वन्नास पढ़ा कर मंज़ूर-ए-नज़र अहल-ए-तरब ही हैं तिरे क्यों हम से भी तो तू मिल कभी सहराओं में आ कर लोगो की निगाहों से छुपाऊँ तुझे कैसे ऐ शख़्स तिरा नाम तो लिक्खा है जबीं पर अब आँख के सोते से निकलता नहीं है ख़ूँ इक उम्र हुई सूख गया दर्द का साग़र तू वादी-ए-गुलशन के उजड़ने का सबब है इल्ज़ाम ये रक्खा है बहारों ने मिरे सर