आफ़त-ए-जाँ उस परी से दिल लगाना हो गया उस को क्या चाहा कि इक दुश्मन ज़माना हो गया पाँव वो कब आते थे अब पाँव में मेहंदी लगी ये तो अब उन के लिए ख़ासा बहाना हो गया देख लेंगे उस के दरबाँ को भी अब तो क्या कहें गर किसी तक़रीब उस कूचे में जाना हो गया दिल को पाया हम ने सीने में तड़पते लोटते गोश-ज़द जब अपने शे'र-ए-आशिक़ाना हो गया क्या करेगा ख़ुल्द को ले कर वो बतला तो सही कूचा-ए-सफ़्फ़ाक में जिस का ठिकाना हो गया ख़िर्मन-ए-ताब-ओ-तवाँ के वास्ते ऐ हम-नशीं ग़ैरत-ए-सद-बर्क़ उस का मुस्कुराना हो गया कोह-ए-ग़म तेरे मरीज़-ए-हिज्र ने सर पर धरा ना-तवाँ तेरा यहाँ तक तो तवाना हो गया याद में उस ज़ुल्फ़-ए-मुश्कीं की शब-ए-फ़ुर्क़त में 'ऐश' जो गिरा आँसू का क़तरा संग-दाना हो गया