बुतों के साथ तबीअ'त को आश्ना कर के हुए ख़राब ग़रज़ दिल को मुब्तला कर के बता तू ऐ फ़लक-ए-फ़ित्ना-कार उस बुत से लगा है हाथ तिरे हम को क्या जुदा कर के अब आगे देखिए क्या निबटे उस के दरबाँ से हम उस के पहुँचे हैं दर तक ख़ुदा ख़ुदा कर के कहाँ है दिल जो लगाएँ किसी से पहले ही हम अपना बैठे हैं दिल सर्फ़-ए-मुद्दआ' कर के किया न फ़ाएदा कुछ ख़ाक चारागर आख़िर मरीज़-ए-इश्क़ के नादिम हुए दवा कर के उठाया हाथ जो इश्क़-ए-बुताँ से तुम ने तो फिर बसर करोगे भला 'ऐश' उम्र क्या कर के