आग भड़की कहाँ थी किधर लग गई थी ख़ता किस की और किस के सर लग गई दिल धड़कने लगा मुस्कुराते हुए मेरी ख़ुशियों को किस की नज़र लग गई इस चमन के मुक़द्दर में ही आग है आज इधर लग गई कल उधर लग गई बात तो आप के और मिरे बीच थी फिर ज़माने को कैसे ख़बर लग गई आप अब जो भी चाहें वो उन्वान दें मेरी तस्वीर दीवार पर लग गई मेरे दामन पे चश्म-ए-करम ऐ ख़ुदा मैं मुसाफ़िर था गर्द-ए-सफ़र लग गई आग तो आग है आग की बात क्या लाख दामन बचाया मगर लग गई जेब-ओ-दामन से महरूम हो जाओगे चोट अगर मेरे एहसास पर लग गई ऐ 'अज़ीज़' उन को एहसास होता नहीं और मेरी ज़िंदगी दाओ पर लग गई