मैं हूँ और मेरी शाइरी तन्हा चाहिए मुझ को दो घड़ी तन्हा चंद पल को मिले हैं लोग यहाँ आख़िरत में है आदमी तन्हा ज़ोर चलता नहीं हवाओं पर घूमती है गली गली तन्हा अब मुझे जाने की इजाज़त दो चीख़ती होगी ख़ामोशी तन्हा तेरी याद आ के घेर लेती है होती हूँ गर मैं जब कभी तन्हा मरना आसाँ लगा 'सहर' उस को काटती कैसे तीरगी तन्हा