आग है ख़ूब थोड़ा पानी है ये यहाँ रोज़ की कहानी है ख़ुद से करना है क़त्ल ख़ुद को ही और ख़ुद लाश भी उठानी है पी गए रेत तिश्नगी में लोग शोर उट्ठा था याँ पे पानी है ये ही कहने में कट गए दो दिन चार ही दिन की ज़िंदगानी है सारे किरदार मर गए लेकिन रौ में अब भी मिरी कहानी है