हर एक सवाल का देते हैं क्यूँ जवाब ग़लत पढ़ा है बच्चों ने शायद सभी निसाब ग़लत हमारे अहद-ए-वफ़ा का कहीं भी ज़िक्र नहीं मोअर्रिख़ों ने लिखे अब के सारे बाब ग़लत तनाबें टूट के बिखरीं तमाम ख़ेमों की हवा के रुख़ का लगाया गया हिसाब ग़लत ख़याल-ए-शौक़ की बे-चेहरगी पे क्या रोएँ दिलों में हम ने बसाए थे सारे ख़्वाब ग़लत इबादतों के मरातिब बुलंद हों कैसे तिरे अमल में गुना का है इर्तिकाब ग़लत हम एहतिसाब-ए-अमल से गुरेज़-पा ही रहे न वो ग़लत है न उस का कोई इ'ताब ग़लत दिल-ओ-दिमाग़ की बस्ती उजड़ भी सकती है पढ़े जो आँख हमारी कोई किताब ग़लत मसाफ़तों के कड़े कोस सहल क्या होंगे अगर सफ़र में मिले कोई हम-रिकाब ग़लत