आगही ने ये राज़ पाया है रौशनी का सुबूत साया है अपने ग़म का हिसाब लाया है जो भी ग़म-ख़्वार बन कर आया है देखिए दिल पे क्या गुज़र जाए कोई रह रह के याद आया है सरफ़राज़ी पे भूलने वालो ग़म भी ख़ुशियों के साथ आया है उन से वाबस्तगी का क्या कहना अपना हो कर भी दिल पराया है इश्क़ ने हर मक़ाम से हट कर रंग अपना अलग जमाया है ज़िक्र है जिस की शादमानी का वो भी माहौल का सताया है ऐ 'रिशी' कारोबार-ए-उल्फ़त में जिस ने खोया है उस ने पाया है